“लोकतंत्र में जो अपने क्षेत्र को पुश्तैनी कहता है वो लोकतंत्र का अपमान करता है” ये कहना है करहल से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को चुनौती देने वाले एसपी सिंह बघेल का,उन्होने ट्वीट भी किया है.
जब अखिलेश यादव करहल से पर्चा भर रहे थे तो शायद उन्होने अनुमान होगा की इस बार उनका मुक़ाबला भाजपा के संजीव यादव से होने जा रहा है लेकिन तस्वीरें जल्द ही साफ हो गईं कि इस बार अखिलेश यादव के लिए ये चुनौती इतनी आसान नहीं होगी. क्योंकि कुछ देर बाद ही केंद्रीय कानून मंत्री एसपी सिंह बघेल ने बेहद खामोशी से करहल से अपना नामांकन कर दिया.
करहल इस चुनाव मे हॉट सीट बनी हुई है क्योंकि यहाँ से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. करहल विधानसभा सीट मैनपुरी लोकसभा सीट के अंदर आती है और वर्तमान मे सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव यहाँ से सांसद हैं. मुलायम सिंह यादव ने करहल से ही अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त कि है और बतौर शिक्षक यहाँ नौकरी भी की थी.
एसपी सिंह यूपी के औरैया जिले के भाटपुरा गाँव मे 1960 मे पैदा हुए. वो मिलिट्री साइंसेज मे एमएससी हैं, इतिहास मे एमए और पीएचडी भी हैं. अगर पेशे की बात की जाए तो एसपी सिंह बघेल आगरा के आगरा कॉलेज मे सैन्य शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर भी हैं.
1989 जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो एसपी सिंह बघेल सब इंस्पेक्टर थे और उन्हे मुलायम सिंह का सुरक्षाकर्मी बनाया गया था. बाद मे उन्हे मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.
1998,1999,2004 मे एसपी सिंह बघेल समाजवादी पार्टी से जलेसर सीट से लोकसभा सांसद रहे. 2010 मे वे सपा छोडकर बसपा मे शामिल हुए और मायावती उन्हे राज्यसभा का सांसद बनाया.
बसपा के बाद 2015 मे वे भाजपा से जुड़े और उन्हे भाजपा के ओबीसी मोर्चे का अध्यक्ष बनाया गया. 2017 मे वे फ़िरोज़ाबाद के टूंडला के आरक्षित सीट से विधायक चुने गए और योगी सरकार मे काबिनेट मंत्री बने. 2019 मे उन्होने आगरा के आरक्षित सीट से चुनाव लड़ा और चौथी बार सांसद चुने गए. उन्हे केंद्रीय विधि और राज्य मंत्री बनाया गया.
विवाद
बसपा के उम्मीदवार मनोज कुमार सोनी ने 2019 मे आगरा से चुनाव लड़ने को इलाहाबाद हाईकोर्ट मे चुनौती दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मनोज कुमार सोनी ने इस चुनाव को इस आधार पर चुनौती दी कि एसपी सिंह बघेल ओबीसी कैटगरी के हैं. वो एससी नहीं है , इसलिए आरक्षित सीट पर वे चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.
फिलहाल ये मामला हाईकोर्ट मे लंबित है. लेकिन चुनावों मे किसी भी मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है.
सपा परिवार के खिलाफ चुनावी रिकॉर्ड
बघेल अब तक तीन बार सपा परिवार के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. 2009 मे पहला मुक़ाबला अखिलेश यादव के खिलाफ फ़िरोज़ाबाद सीट पर हुआ उस समय वे बसपा के प्रत्याशी थे. इस चुनाव मे अखिलेश यादव ने उन्हे 67,000 हजार वोट से हारा दिया.
2009 के चुनाव मे अखिलेश यादव ने फ़िरोज़ाबाद और कनौज दोनोंदी सीटों से चुनाव जीते थे और उन्होने फ़िरोज़ाबाद सीट छोड़ दी थी. उपचुनाव हुए और सपा के प्रत्यशी डिम्पल यादव के खिलाफ बसपा से एसपी सिंह बघेल और कांग्रेस से राजबब्बर मैदान मे चुनाव लड़ने उतरे, डिम्पल यादव चुनाव हार गईं. इस चुनाव मे बघेल तीसरे स्थान पर रहे और डिम्पल दूसरे स्थान पर लेकिन तीसरे स्थान पर रहने के बावजूद भी उन्हे डिम्पल से सिर्फ 13,000 वोट कम मिले थे.
अब बात तीसरे बार की. 2014 मे जब मोदी लहर देश मे पूरे उफान पर थी उस समय एसपी बघेल ने इसी सीट पर सपा के प्रत्याशी अक्षय यादव के खिलाफ चुनावी मैदान मे रुख किया लेकिन रिकॉर्ड 1,14,000 वोटो से एसपी सिंह बघेल चुनाव हार गए. अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव के बेटे हैं.
1998 से शुरू हुए उनके राजनीतिक करियर मे उनका यादव परिवार के खिलाफ ट्रैक रिकॉर्ड हार का रहा है लेकिन राजनीति संभावनाओं के नए प्रवेश द्वार भी खोलती है और करहल का चुनावी मैदान अब हॉट सीट मे तब्दील हो चुका है.
करहल विधानसभा सीट यादव बाहुल्य सीट है जिसका फायदा अखिलेश यादव को हो सकता है लेकिन एसपी सिंह बघेल को कम आकना उनकी भूल भी हो सकती है. जिस सीट पर चुनाव एकतरफा लग रहा था वहाँ भाजपा ने बघेल को उतारकर चुनावी समीकरण ही बदल दिया है.