यह भी पढ़ें

अरघ के दिन – संदीप कुमार

बचपन से हम अपना दादी के हर साल छठ करत देखनी, अपना माईयो के हम छठ करत देखनी। भइया लोग के अउर कुछ साल बाद हमहूँ कुदारी, बल्टी, गोबर लेके पोखरा पर जाके घाट बनावे; आम के लकड़ी फाड़े के काम; आम के पल्लव लावे; छत पर गहूम अगोरे आ माई – चाची लोग के जांता में गहूम पीसत छठ के गीत गुनगुनात देखनी।

ई सब देखत समय हमरा दिल-दिमाग़ में एगो सवाल हरदम कुलबुलाए कि हमनी इँहा हतना तीज-तेवहार होला, बाकी ओमे छठपूजा बदे एगो अलग भक्ति अउर संवेदना भा मोह देखे के काहे मिलेला? माई कहेले कि “छठ पूजा बड़ा बिकट आ शुद्धि के परब ह; एकरा में बड़ा साफ़-सफ़ाई ( असल में, अइजा साफ़-सफ़ाई के मतलब छठी मइया के परसादी बनावे से लेके चढ़ावे तक एगो परिंदा तक के जुठारे से बचावे खातिर) के ज़रूरत होला।
बाकी माई के ई बात भी हमार कुलबुलाहट के शांत ना कर पावेला।

पर ना परियार साल छठपूजा के दूसरका अरघ के दिन भिनसहरे अपना भइया-भौजी के सूरुज देव के अरघ देत देखत रही। देखनी अभी-अभी लगले पौ फुटल रहे; आकाश तनिका-तनिका उजरियात रहे; क्षितिज के पूरब छोर पलाश के फूल अस ललियाइल रहे; नीचे पोखरा के चारो घाट पर तिवइयन के हुजूम रहे; पोखरा के पानी एकदम शांत रहे बाकी ओमे कमर भर देह डूबवले हमार भइया-भौजी हाथ जोड़ तनिका थरथरात रहले। कुछ मिनट के बाद पोखरा में सतरंगी रश्मि झिलमिलाय लागल; कले-कले शीतली बेयार बहे लागल; घाट के चारु ओर कलसूप जगमगाय लागल।

एह बीच, अचानक! हमार कुलबुलाहट शांत होए लागल। मानअ ऊ कुलबुलाहट के जवाब मिल गइल। एक के बाद एक विचार आवे लागल कि ई तेवहार एगो साधारण तेवहार थोरे ना ह, ई ब्रह्म अउर माया के मिलन के ह; ई मूर्त अउर अमूर्त के मिलन ह।ई जड़ तत्व मगध के भूमि; पृथ्वी के गति; सुरुज के अगिन; कार्तिक के शीतली बेयार, पोखरा के पानी अउर पूरा आकाश। ई सब त–

” क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीरा
पंच तत्व से बना अधर शरीरा “

मिलके एह जड़ रूप के निर्माण कइले बा। बाकी ई जड़ तत्व के बीच सब तिवइयन के हृदय के सुपनी में अनगिनत चेतना के दीप टिमटिमात बा। जवन अमूर्त बा; चेतन बा; ब्रह्म के अंश बा। तब लागल कि इहे तऽ आत्म अउर अनात्म के मिलन ह ; यथार्थ अउर अध्यात्म के मिलन ही त छठपूजा ह अउर एकर विशेषता ह। जवन एकरा के बाकी तीज-तेवहार से अलग अउर विशेष बनावेला।

आपको यह भी पसंद आएगा