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भोर के आस में – मुकेश भावुक

भूल पर भूल होता,
कुछ बुझाते नइखे,
लोग सांच बोलता की झूठ,
चिंन्हाते नइखे.

मन के ख्वाब,
न जाने कबले होइ पूरा,
चारो ओरी अन्हरिया बा,
रास्ता दिखाते नइखे.

जतन कर के रखले रहनी,
जवन चांद तारा ताख पर,
रात हो गइल,
पर टिमटिमाते नइखे.

भोर के आस में रहनी,
‘भावुक” रात भर जागल,
अब दिनों में भी ओकरा,
नीद भेटाते नइखे

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