ग़ज़ल लिखनी हँ सातो रंग से चटकार होली में
बोलवले बा केहू हमरा के देके तार होली में ।
कबो हमनी लगवले जे रहीं कचनार होली में
उ बढ़ के हो गइल बा के तरे छितनार होली में ।
कबो एकरार होली में कबो इनकार होली में
गजब उल्टा भइल बा दिल के कारोबार होली में ।
चलल बानी अगर लिहले अकेले रूप के दउलत
रहीं हुशियार, बाड़े सन इहाँ बटमार होली में ।
बिरज मशहूर बा लठमार होली से, त बा लेकिन
इहाँ घायल भइल बा दिल इ कनखीमार होली में ।
इ सरदी के सतावल त महिनवन पर उठल बानी
कहाँ जाएब बुढ़ौती में चचा ससुरार होली में ।
हई देखीं सुलखना के, उ दारू पी के सूतल बा
आ घरनी कह रहल बीआ कि बा बीमार होली में ।
बड़ा भागे से मिल जाला कबो ससुरार में गारी
तनिक अनराज मत होखीं अरे सरकार होली में ।
मुहब्बत के बा लिहले जाल केहू दिल के दीअर में
कि चिरई के बझावे आ गइल मिसकार होली में ।
कहीं त तंग साहेब छोड़ के हितई निकल जाईं
कि मँहगी में सम्हारीं हाय हम घरबार होली में ।