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केका समझी आपन केका समझी गैर, छोड़ा खैर? – राम अचल पटेल

केका समझी आपन केका समझी गैर
छोड़ा खैर?

घरहिन में बा खींचा तानी
सब मन मनुआ सब मनमानी
देवी देउता भये उड़न – छू
सुख लइके उडि चलिन भवानी
केतनो चीखी – माथा पीटी
केहु न बा सुनवईया टेर
छोड़ा ख़ैर?

बाबू ,भईया ,माई, भउजी
सब के सूझी बा अलगौझी
अलग अलग बा चूल्हा सबके
अलगै दुलहिन दूल्हा सबके
कट के अईसे रहैं की जईसे
जनम – जनम के बाटई बैर
छोड़ा ख़ैर?

केका पकड़ी केका छोड़ी
केकरे माथे गुस्सा फोडी
केसे विनती अउर चिरौरी
केसे हाथ अ अंगुरी जोरी
केका कही ई जीवन गाड़ी
चल ना पाई प्रेम बगैर
छोड़ा ख़ैर?

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