गांव जवार के सिवान याद आवेला,
घर के टूटहि पलान याद आवेला.
सब भिज जाला चुवला से यह में,
तब तब हमके मकान याद आवेला.
अहिजा भी त कम नइखे जिनगी,
तारीख आवे ना पगार याद आवेला.
छीटा जाला पईसा, भुजा के जइसन,
का कहीं घर के बीमार याद आवेला.
लचारी, बेबसी के आगे जोर कहाँ,
गिरवी रखल घर के समान याद आवेला.
‘भावुक’ हो सुख में सिमरन के करे,
दुख में ही भगवान याद आवेला.
Copyright by Mukesh Bhawuk