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घर परिवार के बोझा – दिपेन्द्र सहनी “दीपू”

दिपेन्द्र सहनी "दीपू", नेपाल से

कइसे कमाईँ कि घर के खर्चा चलाईं,
सेलरी दस रूपिया बढता,
तले दस गो सामान के,
भाव बढ जाता।

शिक्षा,स्वास्थ्य,घर परिवार के बोझा
बहुते भारी हो गइल,
एगो उतरे ना तले दोसर आके
मुडी पर चढ जाता।

लइका रहीं तऽ सोंची बडका होखेम,
तब खुब पइसा कमाएम आ
बाबुजी के सेवा करेम,
और हालात देखि कि बाबुजी के,
बुढा पिन्सिन में से मांगे के पड़ जाता।

गाँव के एक आदमी कहत रहले हऽ,
लबरइ,फटहइ सिखले आ गाँवे आव.
राजनीति के व्यवसाय अभी ट्रेण्डिग में बा,
जवने पावता उहे लड़ जाता।

जनता के पइसा लुट के आपन
घर,दुआर सब कुछ बन जाता,
भले देश के हालत बिगड जाता।

कबो एह डाढे तऽ कबो ओह डाढे
दलबदलुअन के भी खुब लिला बा,
जवन पार्टी बरिआर बा,
ओनही उढर जाता

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