यह भी पढ़ें

हमेशा रहल नेह दियना बुताइल-श्रद्धानन्द पाण्डेय

हमेशा रहल नेह दियना बुताइल,
जिनिगिया ई अबले अन्हारे में बीतल।

हिया में रहल पीर अँखियनि में पानी,
न जियरा के केहू सकल सुनि कहानी,
न ओठनि प आइल कबो बात मन में,
जिनिगिया ई सोचे-विचारे में बीतल।

न आइल कबो ले संदेशा बदरिया,
रहल ताकते नीर भरले नजरिया,
न आइल घरे मीत मनवाँ के कबहूँ,
जिनिगिया ई रहिया निहारे में बीतल।

गइल बीत सावन ना गवलीं कजरिया,
बहल ना कबो मन्द शीतल बयरिया,
न साधनि के हमरा कबो मेघ बरिसल
जिनिगिया ई अबले सुखारे में बीतल।

आपको यह भी पसंद आएगा

साहित्य अड्डा

केका समझी आपन केका समझी गैर, छोड़ा खैर? – राम अचल पटेल

केका समझी आपन केका समझी गैर छोड़ा खैर? घरहिन में बा...

छूट गइल जबसे घरवा-रिशु कुमार गुप्ता

मन करत रहे पहिले जाए के दूर हो, रहे ओह...

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा – नूरैन अन्सारी

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा. धतूर जईसन कडुआ...

सब कुछ सहल जाता – नूरैन अन्सारी

कहाँ कुछु कहल जाता. सब कुछ सहल जाता. बोली पर पाबंदी...

जबसे राउर एहसान भइल बा – नूरैन अन्सारी

जबसे राउर एहसान भइल बा. बहुत ज़्यादा नुक़सान भइल बा. भूख...