‘प्रदीप’ ऊ जरत रहे अन्हार में अँजोर में,
जरत रहे बरत रहे हवा के जोर-शोर में।
के कही प्रदीप ऊ बुता गइल, जहान में,
आजुओ ऊ जर रहल बा, साँझ अउर भोर में
प्रदीप से प्रकाश ले, अनेक दीप जर रहल,
दीप दीप से जरल कहात ओर-छोर में।
गाँव-गाँव दिग्-दिगन्त में प्रभा प्रदीप के,
कर रहल अँजोर आजुओ इहाँ सजोर में।
दीप ऊ अखण्ड नित्य लोक में प्रकाश दी,
सीख भरल बन्धुवर! समाज पोर-पोर में।
पूज्य ऊ सुजान शान मान से रहे भरल,
इयाद क के मन हमार, डूब रहल लोर में।