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जागऽ बेटी.. – रिशु कुमार गुप्ता

शारदीय नवरात्र के अवसर पर तमाम नारी शक्ति के समर्पित ई रचना - ~रिशु कुमार गुप्ता, कसियां, डुमरांव, बक्सर से

हर जुग में होखत आइल तहरे प अत्याचार काहें?
काँपत आवाज, असह्य चीख, तहरे ही हाहाकर काहें?

मर्द हो गइल शब्द से प्रबल,
तु अपना के अबला कइसे जान गलू?
केहू आई तोहार लाज़ बचावे,
इ झूठ के तु सच कइसे मान गइलू?

एहिजा ना केहू कृष्ण मुरारी
इ जग में ना केहू राम हवें,
टक टक देखीहे सभे तमाशा
सब कायर के समान हवें।

हया हटावऽ अब चंडी के रूप धर लऽ
अइसन बेरहमन के तु परान हर लऽ
राखे खातिर मर्यदा तु हथियार उठावऽ
अइसन निरलज खातिर तु कफन बिछावऽ।

याद करऽ
एक समय में दुर्गा तु, एक समय में काली रहुँ,
असुरन के रक्त घट घट पियत तु चामुंडा मतवाली रहुं।

बन जा झाँसी के रानी,
अन्याय पर संघार करऽ
तोहार इज्जत के तरफ आँख जे उठे,
उ आखन पर तु वार करऽ।

प्रन लऽ
जब जब दुशाशन आई हो,
तब तब उ मारल जाई हो,
अब बिनती नाहीं रन होई,
दुष्टन के परान हरन होई।

जदि लंका तक राह नाहीं मिलल तऽ
समंदर फिर से सुखी हो,
सीता के मान बचावे खातिर,
पवन पूत लंका फिर से फूकी हो।

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