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का बतलाईं यार बुढ़ारी – श्वेता राय

का बतलाईं यार बुढ़ारी।
कई देला बेकार बुढ़ारी।

आँख कान सब गइल किनारे,
घुटना से लाचार बुढ़ारी।

दांत हेराइल स्वाद बिलाइल,
लागे जइसे भार बुढ़ारी।

बरवा झर के उज्जर हो गइल,
का करिहें श्रृंगार बुढ़ारी।

इंस्टा ट्विटर जुग में जाना,
बासी बा अख़बार बुढ़ारी।

नाती नतिनी यदि हो संघे,
तब जाना गुलज़ार बुढ़ारी।

गऊंवा तब्बो ठीक ठाक बा,
शहर में जिउ के मार बुढ़ारी।

राम राम कहि रोज पूछाला,
होई कइसे पार बुढ़ारी।

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