हमरा अटैची से सामान निकालत में भउजी के हाथ पर एगो तिलचट्टा रेंगल। ऊ अकबका के अतना जोर से आपन हाथ झटकली कि हमार अटैची दूर फेंका गइल आ ओमें राखल सब सामान एने-ओने छितरा गइल। भउजी सब सामान बटोरे लगली। तलहीं उनकर नजर हमरा ओह प्रेम-पत्र पर गइल, जवन विज्ञान के किताब के जिल्द फार के बहरी झाँकत रहे। भउजी पहिले सब सामान सहेज के रख दिहली। फेर ओह चिट्ठी में डूब गइली–
” प्रिय हमराही,
” हमरा जिनिगी के सब सुख तोहरे प अर्पित। अचानके चिट्ठी का माध्यम से हमरा होंठ के स्पर्श पा के तऽ चौंक गइल होखबऽ। बा नु ई बात। तोहरा का पता, कवना तरे हमार ई होंठ पाँच बरिस से आपन जुबान बन्द कइले तरफड़ात बाड़न स। लाख-लाख शुक्र बा भगवान के जे ऊ हमरा के हिमालिनी से मिलववले। हँ-हँ, उहे हिमालिनी जेकर नेह, प्यार आ सान्निध्य तोहरा दू बरिस ले रस्तोगी फिजिक्स सेण्टर, पटना में मिलत रहल बा। ई चिट्ठियो हम उनहीं के हाथे भेज रहल बानी। काहे कि तू हमरा के आपन पतो-ठेकाना देबे लायक ना समुझलऽ।
” राहुल, हमरा दिल के धड़कन …… । अइसन कवन कसूर हो गइल हमरा से कि तूँ हमरा के बीच मँझधार में छोड़ के लापता हो गइलऽ? ।जवाब द ……चुप काहे बाड़! बोलऽ ना राहुल, तू अतना कठोर कइसे हो गइलऽ। आज हमार दिल हमरा से रो-रो के पूछत बा कि का तोहार राहुल अबहियों उहे राहुल होइहें जवन एशिया के सबसे बड़ महाविद्यालय जे॰बी॰एस॰ कॉलेज, कानपुर के छात्रनेता रहले, जे समाज सुधारक संघ के अध्यक्ष रहले। जेकरा अभिनय पर, जेकरा आवाज पर हजार ताली एके बेर गड़गड़ा उठे। जेकरा एक इशारा पर पल भर में सड़क जाम हो जाय भा कॉलेज के लइकन-लइकियन का बीचे नेता भा डी॰एम॰ घिर जास।
“का तू अबहियों उहे राहुल बाड़ऽ, जेकरा के हमार सखी लोग” श्वेता के प्रिन्स” कहके पुकारे? का तू अबहियों उहे राहुल बाड़ऽ जे जेठ के दुपहरिया होखे भा माघ के कड़क ठंढ, मोती-झील के किनारे बइठ के घंटन हमरा संगे बतियावऽ?
“तूँ कइसे भुला गइलऽ ओ पहिला मुलाकत के, जब” विवेकानन्द भारत परिक्रमा”कार्यक्रम के दौरान तूँ हमरा के फूल के गुलदस्ता भेंट कइले रहलऽ, भा जब हमार अंगुरी, तहरा अंगुरी से छुआ गइल त कहले रहल कि” अब तो कयामत तक भी इस क्षण से मुक्त नहीं हो सकेंगीं ये उंगलियाँ।” आ सालो ना बीतल, तू हमरा के छोड़ के लापता हो गइलऽ, ई कयामत अतना जल्दी कइसे आ गइल, राहुल!
” यकीन नइखे होत। तू अइसन हो जइबऽ। का गलती रहे हमार, कवन गुनाह कइले रहनी हम, जे तू हमरा से मिले बिना, बिना बतियवले चुप-चाप हमेशा-हमेशा खातिर कानपुर छोड़ दिहलऽ। हम मानत बानी ६ दिसम्बर ९२ के ऊ रात, जब बाबरी मन्दिर ध्वस्त भइल, तहरा खातिर खतरनाक रहे। एगो छात्र नेता खातिर भयावह रहे। तू चारो तरफ से मुसलमानन से घिरल रहलऽ। मउवत तहरा सिर पर मँडरात रहे आ परमपिता परमेश्वर के असीम कृपा (जवना के हम अपना सुहाग के सौभाग्यो मानऽ तानी) कि तू सकुशल इहाँ से बच निकललऽ आ अपना घरे चल गइलऽ।
” मालूम बा, हम ओह दिन रात भर रोअत रहनी, छटपटात रहनी, भगवान से गोहरावत रहनी कि हे भगवान! हमरा राहुल के रक्षा करिहऽ। हम अपना के-के कोसत रहनी कि तू हमरे वजह से सात थाना के मुसलमानन से दुश्मनी ले लिहलऽ। पूरा कॉलेज एक तरफ आ तू अकेले, अपना छात्रावास के कुछ साथियन का संगे गरजत रहलऽ। इ सब तू हमरे खातिर कइलऽ। एकर मतलब, ज़रूर तहरा हमरा से प्यार बा। तू हमरा के बहुत चाहेलऽ।
” सबेरे प्रिन्सिपल साहब से मिल के तहरा बारे में पूछे के चहनी बाकी सात दिन ले कर्फ्यू लागल रहल आ हम तड़पत रहनी, छटपटात रहनी, तहरा खातिर। आठवाँ दिने कॉलेज पहुँचनी त पता चलल कि तू हॉस्टल छोड़ के बिहार चल गइलऽ। हमरा बहुत खुशी भइल कि हमार राहुल सकुशल अपना घरे चल गइले। बाकी हमरा ई का पता रहे कि ऊ कानपुर का साथे-साथे हमरो के सदा खातिर छोड़ गइले। जब कबो डाकिया आवे, हम दउड़ के ओकरा पासे पहुँचीं। ई सोच के कि तोहार चिट्ठी हमरा नावें आइल होई. बाकिर अइसन कबो ना भइल। हम पाँच बरिस ले दउड़त रहनी, अइसन अवसर कबो ना आइल।
” तहरा मालूम बा कि हम तहरा के केतना चाहत रहनी। तहरे का? पूरा कॉलेज, कॉलेज के हर स्टाफ आ तहरा-हमरा के जाने वाला लगभग हर कोई ई जानत रहे कि श्वेता आ राहुल एकही शरीर के दू गो नाँव हऽ। आज स्थिति ई बा कि हमनी दुनू नदी के दू किनारा बनिके जिनिगी जी रहल बानी। ऊ त ईश्वर के किरिपा बा कि हमरा हिमालिनी मिल गइली। विश्वास करऽ राहुल, ई ईश्वर का मंजूर नइखे कि हमनी दूनो जुदा रहीं। एही से ऊ फेर से हमनी के मिलववले ह। चिट्ठी देत खा हिमालिनी त सब बतावते होइहें। तबो हमार जीव नइखे मानत। मन करऽता कि तहरा से जी भर के बतिआईं।
” जानत बाड़, जब तहरा चिट्ठी के इन्तजार करत-करत एक साल बीत गइल त हम ऊ सब कुछ करे लगनी, जवन तू करत रहलऽ। हमरा ठीक से भोजपुरी ना आवत रहे, तबो हम भोजपुरी में कविता लिखल शुरू कइनी। हमरा अभिनय ना आवत रहे, तबो हम अभिनय कइल शुरु कइनी आ अभिनय में, लेखन में, दूनू में तोहार छवि निहारत रहनी, तहरा के इयाद करत रहनीं। धीरे-धीरे एह दूनू क्षेत्रन में हमरा सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिलल।
“तूँ चल गइलऽ। फेर ब्वायेज हॉस्टल आ कॉलेज खातिर छात्रनेता के चुनाव भइल। नवीन नाम के एगो लइका छात्रनेता चुनाइल। हम गर्ल्स हॉस्टल आ कॉलेज के छात्रनेता पद त्याग दिहनीं आ अपना भाषण में बोलनी कि” राहुल बिना श्वेता ना” …… जब राहुल छात्रनेता नइखन त श्वेता भी एह पद के त्यागत बाड़ी। ओकरा बाद हम तहरा प्रतिभा आ टैलेन्ट के इयाद क-क के पढ़े लगनी। तू मेधा सूची के मेधावी छात्र रहल बाड़ऽ। इ सोचि-सोचि के हमहूँ मेहनत करे लगनी कि हम तोहरा साथे खड़ा हो सकीं भा तहरा लायक बन सकीं। भगवान हमार सुन लेलें। उत्तरप्रदेश के मेडिकल परीक्षा (CPMT) के मेधा सूची में हमरा स्थान मिलल आ हम किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज में मेडिकल के पढ़ाई करे चल अइनी। सौभाग्य देखऽ, ईश्वर के विधान देखऽ कि एही कॉलेज में तहार एगो दोस्त, रस्तोगी फिजिक्स सेण्टर, पटना के सहपाठी हिमालिनी भी पहुँचली। बाते बात में, एकदिन ऊ आपन एलबम देखइली। ओमें तहार फोटो देख के हम अवाक रह गइनी। हमरा लागल कि इहो लइकी तोहरा के चाहेले। तबों हम अपना के रोक ना सकनी। हम रो पड़नी आ हिमालिनी के जिद कइला पर आपन सब बात बतावे के पड़ल। बाकी हम ई ना जान सकनी कि हिमालिनी तहार कइसन दोस्त हई. जाने के कोशिशो ना कइनी। जानहूँ के नइखीं चाहत। हम नइखीं चाहत कि हमार राहुल केहू दोसरा के होखस। हमार जइसन होखस, जवना हाल में होखस, हमरा राहुल चाहीं।
” एने कॉलेज में एगो ब्यूटी कम्पिटीशन भइल रहल हऽ। हम ओहू में टॉप कइनी हँ। हम बहुत खुश बानी। साँचो अब भगवान देलें त छप्पर फार के देलें। ऊ हमरा के सब देलें। हर तरह के सफलता ……हर खुशी। बाबूजी एगो आई॰ए॰एस॰ अधिकारी, माई डाक्टर। ।सब कुछ। बस, कमी बा, त खाली तहरे। देखऽ तहरा मालूम बा कि हम अपना माई-बाप के अकेले बानी।
” बुढ़ापा के लाठी। आँखिन के पुतरी। ऊ हमार बात कबो ना टलिहें। हमार माई हमरा के बहुत चाहेले। माई के ख्याल करऽ। माई शब्द से तूहूँ परिचित बाड़ऽ। तहरो माई बाड़ी। इयाद करऽ–बिड़ला मन्दिर में देवी के मूर्ति का सामने तू कहले रहलऽ कि श्वेता हमार माईयो एही देवी लेखा बिया। बिल्कुल देवी. हम अपना माई से तहरा के एक दिन ज़रूर मिलाइब, बाकिर अइसे ना । एतना कह के तू हमार दुपट्टा के घूंघट में बदल देलऽ आ मुस्कुरा के कहलऽ कि अइसे…। । का-का सपना देखइले रहलऽ … का सपना सपने रह जाई? बोलऽ कब मिलावत बाड़ माई से? … ओह देवी से जेकरा आशीष खातिर हमार रोम-रोम कलप रहल बा।
“राहुल!” दुपट्टा में हथियार”वाली घटना इयाद बा तहरा? जवना के बाद तूँ बड़ी मजाकिया मूड में हमरा से कहले रहऽ कि” वर माँगो बालिके… दिल खोल के माँगों… राहुल बाबा आज तुम पर बहुत खुश है … जो माँगोगी, बाबा वह देगा।”तब हम जवाब देहले रहीं कि” राहुल बाबा रहने भी दो। इतनी जल्दी क्या है? ज़रूरत पड़ने पर माँग लूँगी।” आज वर माँगे के ज़रूरत आ गइल बा राहुल। तू हमार प्यार लौटा दऽ–तू फेर उहे राहुल बन जा । पाँच बरिस पहिले वाला राहुल, श्वेता के राहुल।
“हिमालिनी कहत रहली कि उहाँ फेयरवेल के दिन तूँ क्लास में आपन एगो रचना सुनइले रहलऽ कि” क्या हुआ जो अक्सर मौन रहता हूँ, कह नहीं पाता कि तुमसे प्यार करता हूँ।”अगर ई कविता हमरा खातिर रहे त तू आ जा। हम तहरा से कहत बानी कि हँऽ” हम तहरे से प्यार करीले। सिर्फ़ तहरे से। तहरे खातिर जीयत बानी आ तहरे खातिर मरब।” हमरा सुन्दरता आ टैलेन्ट पर पूरा मेडिकल कॉलेज लट्टू बा आ हम तहरा पर। तहरा हमरा पर गर्व होखे के चाहीं, पर ना होत होई. बा नू ई बात। काहे कि भारतीय मरदन के ई आदत होला कि ऊ अपना प्रेमिका भा पत्नी के अपना से नीचे रखे के चाहेलन। हम मेडिकल कॉलेज में बानी आ तूँ कॉलेज के बाहर। जदि तू अइसन सोचत होखऽ त सिर्फ़ एकबार आके कह दऽ कि श्वेता हम तोहार साथ देबे के वादा करत बानी त हम तहरा पर आपन मेडिकल कैरियर भी न्यौछावर क देब, हमरा नइखे बनेके डाक्टर। हमार सब मेहनत खाली तहरे खातिर रहे। मेडिकल में प्रवेश भी तहरे खातिर। तू मिल जा। हम समुझब कि हमार सब तपस्या सफल हो गइल… तहार श्वेता … सिर्फ़ तहार … तहरे।
“आरे, एगो राज के बात त बतइबे ना कइनी। राजे ना, भगवान के महान किरिपा। तहार बाबूजी रामराज पार्टी के नेता हउवन नू। रेणुकूट (उ।प्र।) में बिड़लाके फैक्टरी मात्र एके बेर बन्द भइल रहे आ ओकरा के बन्द करावे के श्रेय तहरा बाबूजिए के बा नू। जानतारऽ, ई सब हमरा कइसे पता चलल। एक दिन तहार ऊ फोटो जवना में तू अपना बाबूजी का साथे बाड़ऽ, हमरा बाबूजी के हाथे लाग गइल। बाबूजी फोटो देखते कहले कि आरे ई त कृष्णदेव भाई के फोटो हऽ। ओकरा बाद ऊ हमरा से फोटो के बारे में पूछलन त हम बता दिहनी कि हमरा एगो बहुत बढ़िया दोस्त के हऽ। तब तक हमार बाबूजी अपना अतीत में खो चुकल रहले। ऊ बतावे लगले कि” हम आ कृष्णदेव भाई दूनो आदमी एके साथे जे॰पी॰ आन्दोलन में जेल में रहनी जा।” रिहन्द बाँध के एगो ममिला में जब हमार बाबूजी के फअसा दिहल गइल रहे त पता ना के तरी-के तरी तहरे बाबूजी हमरा बाबूजी के जान बचवले। हमार आ तहार बाबूजी बहुत अच्छा दोस्त रहे लोग, जेकरा एक-दूसरा से मिले आज २०-२५ बरिस हो गइल। भगवान बड़ा कारसाज हउवन। ऊ आदमी के कब, कहाँ आ कइसे मिलवा दीहें, एकर कवनो पता नइखे। राहुल, हमनी दूनू के मिलन दू गो बूढ़ दोस्तन के दोस्ती के रिश्तेदारी में बदल दी। तू हँ कह द। हम बाबूजी से बात क लेब। देखऽ, हम होली में तहार इन्तजार करब। तूँ ना अइबऽ त बहुत पछतइबऽ। ।देखऽ, बसन्त आ रहल बा…… तूही त हमरा जीवन के बसन्त हउवऽ। तूहूँ आ जा। अगर तू ना आइबऽ त जिनिगी भर अपना के माफ ना कर सकब। हम जेतना तड़पल बानी, जेतना रोवल बानी। हमार आह तहरा के जीवन भर चैन से जीये ना दी। …तू ज़रूर अइबऽ राहुल। । ज़रूर अइबऽ। हमार विश्वास अमर बा। जे अमर बा, ओकर मौत ना होखे। तहरा आवहीं के पड़ी। हम इन्तजार करेब, होली बीते के अन्तिम क्षण तक। जदि तू ना अइबऽ त समझ जा कि ऊ हमरा दिल के धड़कन के अन्तिम क्षण होई.
–तोहरे श्वेता…… अपना राहुल के श्वेता । श्वेता राहुल।”
घरे बड़ चचेरा भाई के बियाह रहे। एही में सभे बहरा से आइल रहे। भइया आ भउजी रेणुकूट से आ हम पटना से पहुँचल रहलीं। घर हीत-नात से खचाखच भरल रहे। एह भीड़-भाड़ में भउजी के टाइम ना मिल पावल कि ऊ हमरा से बइठ के अस्थिर बतियावस। बाकिर एह चहल-पहल का बीच जब-जब उनकर नजर हमरा पर पड़ो त ऊ मुस्कुरा देस। ओह घरी हमरा कुछुओ बुझात ना रहे कि ऊ हमरा के देख-देख हँसत काहे बाड़ी। सोचनी, होई कवनो बात। हमरा पूछे के फुर्सतो त ना रहे। काम में बाझल रहीं आ घर में बइठला पर बड़का भइया के डाँटो सुने के त डर रहे कि सब साला घरघुसना हो गइलन सन। काम बा त जाके चुल्ही में बइठल बाड़न स।
बियाह बीत गइल आ हम पटना वापस लवटे खातिर तइयार हो गइनी। गाँव से अतना जल्दी आवे के त मन ना करत रहे बाकिर दूइये दिन बाद एम॰एससी॰ के परीक्षा रहे। एह से आवल ज़रूरिए रहे।
चले का बेर भउजी बोलली, “ए जी, रउआ त बड़ लबजा बानी हम कई बेर कहले होखब कि कवनो ओइसन बात होई त हमरा से ज़रूर कहब । छिपाइब मत। …आ” त ना भउजी, हम तहरा से छिपाइब भला।”। आ सब बात गंगा जी लेखान पचा के रखले बानीं।”
“कवन बात भउजी”–हम चिहात पूछली। अभी भउजी कुछ बोलती कि माई दही पूड़ी लेले आ गइल आ हम दूइये चार कवर खइले होखब कि भइया चिचियाये लगले–”राहुल जल्दी करऽ, बस छूट जाई.”
हम सभकर गोड़ छू के घर से निकल गइनी।
धीरे-धीरे समय बीतल। ई चिट्ठी वाली बात सभका मालूम चल गइल। मालूम चलित कइसे ना। मेहरारूअन का पेट में त कवनो बात ना पचे। खैर, चिन्ता के असल बात ई ना रहे । असल बात त रहे भइया के चिट्ठी। भइया लिखले रहले कि “राहुल तोहार सब बात हमरा मालूम चल गइल बा। हमरे ना, माई, बाबूजी, मउसा-मउसी, बड़-छोट, लइका-जवान सभका पता चल गइल बा। एह में लजाये-शर्माये वाली कवनो बात नइखे। ई जिनिगी के सहज आ स्वाभाविक प्रक्रिया हऽ। एहसे तू श्वेता का बारे में विस्तार से लीखऽ आ अगर उनकर कवनो फोटो होखे त भेज द। आगे के कार्यवाही हमनी का सहर्ष पूरा करब जा। पत्रोत्तर का इन्तजार में, तोहार भइया-मुकेश।”
दिल में प्यार के बीया बोआ जब गइल।
प्रीत के तब फसल, लहलहइबे करी।
जब दिले तोहार, उनकर घर बन गइल।
तब भइया के चिट्ठी त अइबे करी।
“धत मर्दे, त एहमें चिन्ता के कवन बात बा। बजवा ना दऽ बाजा, एही साल। तनी हमहूँ भउजी के देख के जी जाईं। । जा ए राहुल, हम ना जानत रहलीं कि तू अतना कठकरेजा बाड़ऽ। आरे भइया के चिट्ठी पढ़के त तहरा छव फीट धरती से ऊपर कूद जाये के चाहीं। आ तू बाड़ऽ कि तहरा चिट्ठी पढ़के खुशी ना भइल, अचरज भइल।”
“ना ए मनोज भाई, भइया के चिट्ठी पढ़के हमरा कवनो अचरज ना भइल काहे कि हम अपना घर के खुला माहौल से वाकिफ रहली। बाकिर का जवाब लिखीं भइया के. इहे चिन्ता लेस दीहलस। का ऊ आगे के प्रक्रिया । आगे के कार्यवाही साँचहूँ पूरा कर पइहें? … का हमार माई ई बर्दास्त कर पाई कि ओकर बहू हिन्दू ना मुसलमान लड़की हऽ जेकर असली नाम शबाना ह। आ अगर ऊ बर्दास्त कइयो ली, अपना बेटा खातिर, त का बेटा के इहे फरज ह कि ऊ अपना स्वार्थ खातिर अपना महतारी के एह बुढ़ापा में अइसन आत्मिक कष्ट देवे जवना में ऊ रूढ़िवादी समाज से टकरात-टकरात दम तूड़ देव। ना-ना ई हमरा से ना हो सकी। हम सच्चाई ना उगिल सकब। हम भइया के लिख देब कि भइया तू जवन जानत बाड़ऽ, ऊ सब झूठ हऽ आ भउजी के जवन चिट्ठी हमरा अटैची में मिलल ऊ त एगो” कहानी के प्लाट” ह। देखिहऽ, कुछ दिन में कहानी छप के आ जाई.
“ठीक बा, भइया के त झूठ बोल के समुझा देब कि ऊ कहानी ह। बाकिर अपना मन के कइसे समुझाइब। हम कइसे भुला पाइब शबाना के ऊ वादा कि” राहुल, देखऽ हमार माई एगो डाक्टर होइयो के बड़ी कड़ियल आ कट्टर धार्मिक भावना वाली महिला हियऽ। तू हमरा घर में राहुल बनके त ना चल सकेलऽ। एह से तू हमरा खातिर आपन एगो आउर नाम रख लऽ।” आ फेर उहे अपना पसन्द से हमरा खातिर एगो नया नाम चुनली–मु॰सरफराज खाँ।
ओही घरी चट से हमहूँ उनका के एगो नया नाम दे दीहलीं–श्वेता।
एकरा बाद हम सरफराज बनिके उनका घरे जाईं आ ऊ श्वेता बनके हमरा से मिलस। एकरा चलते बहुते मुसलमान हमार दुश्मनो बनि गइले जवना के परिणाम ई भइल कि हमरा अपना सुरक्षा खातिर बरोबरे अवैध हथियार राखे के पड़े।
एकदिन अचानके पास के थाना के गाड़ी आ गइल, कॉलेज में इन्सपेक्शन खातिर। ओह घरी हम क्लास रूम में रहलीं आ श्वेता कॉलेज के लाइब्रेरी से किताब इसु करवा के आवत रहली। तले उनकर नजर हमरा क्लास रूम के ओर आवत पुलिस के समूह पर पड़ल। ऊ काँप उठली आगे के घटना के कल्पना पर। बाकिर चेतना शून्य ना भइली। उनकर विवेक उनका के हिम्मत देलस आ बड़ी तेजी से हमरा पास अइली आ दुपट्टा फइला के फुसफुसा के बोलली–”राहुल दुपट्टा में हथियार डाल द, बाहर पुलिस” । हम दुपट्टा में हथियार डाल देनी आ ऊ धीरे से अपना जगहा पर जाके बइठ गइली।
पुलिस के दल सभ लइकन के चेक करे लागल। हमार दुश्मन मुस्की काटे लगले। सोचले, आज त सब हीरोबाजी निकलिये जाई, बाकिर ओह गदहन के का पता कि प्यार में कतना ताकत होला। अइसन-अइसन छोट जुर्म त दुपट्टे में लुका जाला। …… पुलिस हमरा पॉकेट में हाथ डललस। कुछ ना भेंटाइल। ऊ निराश होके आगे बढ़ गइल। हमार नजर श्वेता पर गइल। ऊ कनखी मार देली।
प्यार आउर गहरा गइल। । दिल के नदी में बाढ़ आ गइल बाकिर मर्यादा के बाँध ना टूटल।
हमनी दूनो जानत रहलीं कि हमनी केतनो नजदीक आ जाईं, एक ना हो पाइब। एक होखे के मतलब बा, दू गो परिवार के विनाश आ प्यार के काम विनाश कइल ना ह … तूड़ल ना ह। निर्माण कइल ह । जोड़ल ह। एकरा खातिर ऊ भले टूट जाव। प्यार करे वाला भले बर्बाद हो जाव। । एही से शुरूए से हमनी दूनों सचेत रहलीं, एगो सीमा के भीतर। एह जवानी का दहलीज पर भी हमनी कबो बहकलीं ना। कानपुर छोड़ला का बाद त हम एगो चिट्ठियो ना लिखनी, उनका के भूला जाये के कोशिश में। बाकिर अचानके पाँच बरिस का बाद मिलल उनकर चिट्ठी हमरा के फेर से बेचैन क देलस। हम फेर ओही आग में धधके लगनी, जवना में पाँच बरिस पहिले धधकत रहीं। एक-एक दृश्य दिमाग में नाचे लागल। दिमाग के नस-नस फाटे लागल। मन जिनगी के बीतल पन्ना उलटे लागल।
सावन के सोमार । साँझ के बेरा आ टिप-टिप बरखा। हॉस्टल के सब लइका सिनेमा देखे गइल रहलन स। एगो हमहीं बाँच गइल रहनीं। सोचनी कि आज डट के पढ़ाई करब, बाकिर ओकनी के गइला का बाद, का जाने काहे हमार मन कइसन-कइसन दो होखे लागल। भीतर बहुत अशान्ति बुझाइल त बिड़ला मन्दिर चल देहनी, उहाँ पहुँचनी त देखनी कि मन्दिर लइकियन आ मेहरारूअन से खचाखच भरल बा। हमरा ई ना बुझात रहे कि आज मेहरारूअन के अतना भीड़ काहे बा? तलहीं हमार नजर हरियर साड़ी पेन्हले आ हरियरे बिन्दी लगवले, । गजब के चुम्बकीय आकर्षण वाली एगो दिव्यांगना पर गइल। … आरे ई त शबाना हई. माने कि हमार श्वेता। ऊ मन्दिर से पूजा क के निकलत रहलीं। हम धीरे से उनका पीछा हो गइली आ पीछे-पीछे चले लगनी, ऊ बहरा पानी के झरना के पास के घास के मैदान पर बइठ के अपना सखियन के इन्तजार करे लगली। हम नजर बचा के धीरे से उनका पीछा बइठ गइलीं आ फेर अपना दूनो हथेली से उनकर आँख मूद देलीं। छन भर खातिर ऊ चिहुँकली आ फेर बोले लगली–”ए सखी छोड़ऽ ना … ए गीता छोड़ऽ, ए सावित्री देखऽ ठीक ना होई । तू बड़ी तंग करेलू …अब लड़ाई हो जाई.”
“हो ना जाव लड़ाई, ए सखी! शुरू करऽ वार …” बोलत हम आपन हाथ हटा लेहनी। ऊ हमरा के देख के अवाक रह गइली। लाजे नजर झुक गइल। धीरे से होठ काटत बोलली–”धत छलिया कहीं का।” आ फेर प्यार के बतकही शुरू हो गइल। सखी लोग उनका के हमरा संगे देख के टरक गइल।
ऊ बोलली, हम सखी लोग का साथे सोमारी करे आइल रहनी हँ। हमार माथा ठनकल … शबाना आ सोमारी। हम कहलीं–सोमारी त हिन्दू लोग में होला। उनकर चेहरा तन गइल आ आँख हमरा आँख पर गड़ गइल। ऊ बोलली, प्यार करे वाला ना हिन्दू होला ना मुसलमान। आ दोसर बात ई तू काहे भुला जालऽ कि अगर हमार जनम देबे वाला माई हमरा के शबनम कह के बोलावेले त जिनिगी देबे वाला एगो दोस्त श्वेता कहके भी बुलावेला। हम मने मन कहनी, श्वेता! हमरा प्रति तोहार जे भाव बा, भगवान हमरा के ओह लायक बनावस।
अन्हार बढ़े लागल। हम बोलनी, श्वेता, घरे चलऽ, अन्हार बढ़ल जाता। थोड़े देर ऊ चुप रहली। आस-पास नजर दउड़वली आ फेर हमरा आँख में आँख डाल के बोलली, अन्हार बढ़ल जाता ओसे का। अँजोर त हमरा साथे बा। श्वेता के जिनिगी के अन्हरिया काटे खातिर राहुल के दिव्य प्रकाश कम नइखे।
तलहीं हमरा कमरा के बिजली गुल हो गइल। हमार ध्यान टूटल। हम वर्तमान में वापस लवट अइलीं, मन पागल लेखान हो गइल। अनायासे कादो-कादो बके लागल। …हँ …हँ श्वेता । बिल्कुल ठीक। राहुल के दिव्य प्रकाश … देखऽ, अन्हार हो गइल। चिराग तरे अन्धेरा । आग लागल बा, हमरा देह में । हम धधकत बानी … ओही से प्रकाश निकलत बा। दिव्य प्रकाश।
हम उनका से मिले खातिर व्यग्र हो गइलीं। चिट्ठी में ऊ हमरा के होली पर बोलवले रहली। हम समझ गइलीं, ई होली ना ईद पर के बोलावा हऽ। ई कुल्हि हमनी के कोड वर्ड ह।
ईद में हम कानपुर गइबो कइनी बाकी उनका घरे ना गइनी। फोन क के उनका के मोतीझील में बोला लिहनी। जब ऊ अइली त हम पूछनीं, “का हो, हमार बाबूजी त तहरा बाबूजी के लँगोटिया इयार हउवन।” पहिले त उ हँसली आ फेर फफक के रो पड़ली। बोलली–”ना, इ झूठ ह … हमार कल्पना ह। तोहरा कठोर दिल के पिघलावे खातिर । अइसन कठोर जे पाँच बरिस ले पातियो ना लिखल, ओकरे के झकझोरे खातिर, एह झूठ के सहारा लेके, चिट्ठी के मार्मिक बनवलीं कि एहू से तू आ जा।”
“तब, तू बाजी त मार लिहलू। तोहार योजना त सफल हो गइल। हम हँसत बोलनी। तहरा हरमेशा मजाके लागल रहेला। जिनिगी के कभी गम्भीरत से ना सोचे लऽ” , ऊ रीझ के कहली।
आ हम फेर साचहूँ गम्भीर हो गइलीं। हमरा गम्भीरता के तूड़त ऊ बोलली–”खिसिया गइलऽ का। हम त अइसहीं कहलीं हँ।” हम कुछुओ ना बोलनी त ऊ फेर बोलली–”घरे ना चलबऽ?”
“सरफराज खाँ बनिके कि राहुल बनिके”–हमरा मुँह से अनायासे निकल गइल। ऊ कुछ ना बोलली, चुप। ऊहो चुप, हमहूँ चुप। … चुप्पी। सन्नाटा साँय-साँय जइसे हवा बहत बहत-बहत रुक गइल होखे। कवनो पतई हिलत ना रहे।
हमहीं पहल क के चुप्पी तुड़नी–”काहे हो?”
ऊ भरि-भरि आँखि लोर लेले बोलली–”राहुल, दुनिया में बहुते अइसन अद्भुत आ आकर्षक चीज बा, जवना के निर्माण खाली देखे खातिर भइल बा, ओकरा के अपनावल नइखे जा सकत। हर” प्रिय”आपन ना हो पावे आ जे आपन ना हो पावे आ प्रिय होखे …ऊ” पूज्य” हो जाला।उहे ललक हमरा के विवश कइलस चिट्ठी लिखे खातिर–अइसन चिट्ठी जवन तोहरा के विवश कइलस इहवां आवे खातिर। ।आखिर हमार साध पूरा हो गइल। तोहार दर्शन हो गइल। हमरा ओरि देखऽ हम तोहरा के जी भरके देखे के चाहत बानी। जवना चीज के अपनावल नइखे जा सकत, ओकरा के जी भर के देखहीं के पड़ेला। । हम केकर दोष दीं।ए रूढ़िवादी समाज के । अपना दुर्भाग्य के … आ कि माई खातिर बेटी के कर्तव्य के… हँ राहुल हँ …हमार माई त कहिये से सरफराज के आपन दामाद मान चुकल बिया। जब ओकरा ई पता चलल रहे कि सरफराज हरमेशा खातिर कानपुर छोड़ देले बाड़न आ उनकर कवनो पता ठेकान हमरा पास नइखे, त ऊ बड़ा दुखी भइल।
“बाकिर उहे माई जब ई जानी कि ओकर दामाद मुसलमान ना… हिन्दू हउवन त ओकरा प का गुजरी। ऊ हिन्दू के त फूटलो आँखिन ना देख सकेले आ जब से बाबरी मस्जिद ढहल, तब से त आउरो ना। एमें रिश्ता के बात सोचल त…”
“श्वेता, हम तोहार स्थिति समुझत बानी। तू रोअ मत। देखऽ आजु ले हमनी दोस्त बनके रहल बानी आ जिनिगी भर रहब। एमें बियाह के सवाले कहाँ उठत बा। आवऽ हमनी के किरिया खा लेवे के कि दोसरा के होइयो के हमनी का बीच क डोर कबहूँ टूटी ना।”–हम उनका कन्धापर हाथ ध के बोलनी।
ऊ हमरा से लिपटा के सुसुके लगली। उनका दिल के दरद आँख का राहे छलछला के हमरा छाती पर टपकल आ हमरा सीना में लागल आग के ताप से भाप बनके उड़ गइल। … दिल में जोर से एगो तूफान उठल। आग लहोक ले लेलस। बुझाइल जे सामाजिक रूढ़िवादिता के महल जर के राख हो गइल आ हमनीं एक हो गइलीं। तलहीं ओह राख में दू गो परिवार के ढेर लोग के लाश लउकल। हम ठंढा पड़ गइलीं आ पटना वापस लवट अइलीं।
एह तरी मिले जुले के, फोन पर बात करे के आ चिट्ठी लिखे के सिलसिला फेर शुरू हो गइल। बाकिर बीच में जवन बियाह के प्रश्न त्रिशंकु लेखान लटकत रहे, ऊ हरमेशा खातिर खतम हो गइल रहे। हम ऐ प्रश्न से मुक्त हो गइल रहनी। बाकिर भइया के चिट्ठी पढ़ के हम भावुक ना भइनीं, बलुक पहिले से ज़्यादा कठोर बन गइनी।
जिनिगी के दुख-सुख के थपेड़न के सहे खातिर कठोर त बनहीं के पड़ी। यथार्थ कठोर बा, धरती कठोर बिया, त दिल के कठोर त बनावहीं के पड़ी, ना त भावुक बनि के एह कठोर जिनिगी के सफर कव घरी तय कइल जा सकेला?
त ठीक बा। हम भइया के चिट्ठी के जवाब लिख देब कि भइया हमरा अटैची के चिट्ठी, जवन भउजी के मिलल, उ हकीकत ना ह … एगो कहानी के प्लॉट हऽ।
बोलत बोलत राहुल के गला रूँध गइल। उनकर आवाज बन्द होखे लागल। नाड़ी के गति धीरे-धीरे शून्य का ओर बढ़े लागल। फेर निष्प्राण होके केने दो लापता हो गइल।
आरे, ई पलक झपकते का हो गइल? इहाँ त केहू नइखे। फेर हम बतियावत केकरा से रहनी हँ? …भूत से …देवाल से… ना-ना … फेर केकरा से? कहीं अपनहीं से त ना? तब ई राहुल के हऽ? आ हमहीं के हईं? हमार दिमाग चक्कर काटे लागल। धरती आकाश सब घूमे लागल। बुझाइल जे राहुल केहू दोसर ना, हमरे आत्मा के दोसर नाम हऽ। हमरे छाया, हमरे प्राण के प्रतिरूप। जे हमरा बीतला जिनिगी के व्यथा कथा सुनावत बा। हम ध्यान से सुने लगनी। आत्मा के धड़कन। धड़कन के स्वर। एकदम रोआइन। … फेर ठठा के हँसे आवाज, आ ओह हँसी में कुछ व्यंग भरल प्रश्न। बुझाइल जइसे केहू पूछत होखे, का हो मनोज कहानी के प्लॉट ह कि हकीकत के पोस्टमार्टम?
परिचय: मनोज भावुक जी भोजपुरी इंडस्ट्रीज़ मे परिचय के मोहताज नहीं है। 02 जनवरी 1976 को सिवान जिले मे पैदा हुए। मनोज भावुक का भोजपुरी गजल संग्रह “तस्वीर ज़िंदगी के” और भोजपुरी दोहा व गीत संग्रह “चलनी मे पानी” है। यहाँ प्रकाशित कहानी मनोज भावुक की लिखी हुई है। साइट पर प्रकाशित कोई भी कंटेन्ट अगर आपके कॉपीराइट का उलंघन करता है तो हमें info@lallanbhojpuri.com पर मेल करें, हम उसे 24 घंटे के अंदर अपने प्लेटफार्म से हटा देंगे। यहाँ उपलब्ध कंटेन्ट सिर्फ जनमानस के पढ़ने और मनोरंजन हेतु दिया गया है.