खुरपी के दोष हसुआ पे डाल के.
खुश मत होख़ी कीचड़ उछाल के.
सम्पत के बढ़ल ना होला स्थाई,
मन के अस्थिर राखी सम्भाल के.
क़र्ज़ा ना उनकर कबो भरा पाई,
कइल जवान ,जे पोस-पाल के.
आख़िर कबो ना कबो झूठ धाराई,
दूर ना जा पायेम साँच के टाल के.
नूरैन हो जाता काहे अपनो पराया,
सोची बिचारी कबो समय निकाल के