सभका दिल मे गम होला,
ज्यादा त कहीं कम होला.
खुल के रोईं रोके देखीं,
लोरवे ही मरहम होला.
खामोशी से अंदर झांकी,
शोर एगो हरदम होला.
जब जब लिखी प्रेम कहानी,
कागज पल पल नम होला.
‘भावुक’ सोचीं सोच के देखीं,
शोला ही शबनम होला.
मुकेश यादव 'भावुक' भोजपुरी के उभरते हुए नए रचनाकार हैं.
सभका दिल मे गम होला,
ज्यादा त कहीं कम होला.
खुल के रोईं रोके देखीं,
लोरवे ही मरहम होला.
खामोशी से अंदर झांकी,
शोर एगो हरदम होला.
जब जब लिखी प्रेम कहानी,
कागज पल पल नम होला.
‘भावुक’ सोचीं सोच के देखीं,
शोला ही शबनम होला.