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नफ़रत के पलरा भारी बा-साबिर सांवरिया

स्वरचित-साबिर सांवरिया, (गोपालगंज)

देखावटी बा प्यार ना मोह बा ना माया
काठ भइल करेज केहू के आवे ना दाया
अपने कमाई चोरा के खाई
एहिमे लम्हर होशियारी बा
ना त नफ़रत के पलरा भारी बा

इ अइसन दौर बा जाहा सब कुछ बेचाता
झूठ से ले के साच ले
पाकल से ले के काच ले
देह के चाह में नेह भी बेचाता
इ बात सभका जानकारी बा
फिर भी नफ़रत के पालरा भारी बा

जे घुमऽ ता इतर लागा के मासूमियत के
ओकरे से बू आवऽ ता हैवानियत के
सम्हार के केतना चली राही
एहिजा चललो त दुश्वारी बा
एहिसे नफ़रत के पालरा भारी बा

जहे तहे लागल बा अन्हा थोपी के खेलवाड़
झपट के मलाई खाए केहू पिएला मेवाड़
अतयंत बा मिजाज़ भइल
सफेद रंग के काला बाजारी बा
एहिसे नफ़रत के पालरा भारी बा

हर मंदिर मस्जिद दियरी मोम जरेला
हिंद खातिर कही ना कही लोग मरेला
मानव के मुकुट पहिन के
धरम के बाटे वाला अधिकारी बा
एहिसे नफ़रत के पालरा भारी बा

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