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सब कुछ सहल जाता – नूरैन अन्सारी

कहाँ कुछु कहल जाता.
सब कुछ सहल जाता.

बोली पर पाबंदी बाटे,
चुपचाप रहल जाता.

दर्द पुरानका उठत बा,
पूरवा ख़ूबे बहल जाता.

सब देवाल उम्मीद के,
बेमौसम ही ढ़हल जाता.

के पोड के गिनती करे,
बांसे जब बहल जाता.

दुख-बेमारी होत बा त,
पटीदारन के लहल जाता.

ये ज़िनगी रोज़ तहरा के,
माठा नींयन महल जाता.

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