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सभे कोई बनल शिकारी – मुकेश भावुक

दुनिया मे अब इहे बुझाता,
बात बात पर लाठी भाला.

सभे कोई बनल शिकारी,
कर देहब हम आधा आधा.

सच,झूठ,अफवाह के मोटरी,
एह में न बा कवनो बाधा.

लूगा चढ़ल कपार के उपर,
ससुर,भसुर त के ह दादा.

माई-बाप के हाल न पूछे,
ससुरारी के मान बा ज्यादा.

मांस मदिरा भईल लग्जरी,
खाना पान रहल न सादा.

सब समान पैकिट में आटल,
दाल, भात, सब्जी आ आटा.

अइसन फैशन देख न बुझनी,
के ह मेहर, के मरदाना.

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