यह भी पढ़ें

उम्मीद के फूल – मुकेश भावुक

होके परेशान उ मर गइल,
का रहे उ का कर गइल?

घर के उम्मीद के फूल रहे,
समय से पहिले झर गइल

डाँटला पर अब चुप्पी बा,
बाप खुद से ही डर गइल

बात दिल के कहीं केसे,
सगरो गांव शहर गइल

ओरात बा कहाँ समय,
देखीं केतना पहर गइल

‘भावुक’ पीछे मत देख,
आगे केतना डहर गइल

आपको यह भी पसंद आएगा

साहित्य अड्डा

होते भिनसहरे बिहान – मुकेश भावुक

कइसे करीं हम बयान, तोहरा से प्रेम केतना होते भिनसहरे...

आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो – मनोज भावुक

खिलने दो ख़ुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो आने दो...

घर परिवार के बोझा – दिपेन्द्र सहनी “दीपू”

कइसे कमाईँ कि घर के खर्चा चलाईं, सेलरी दस रूपिया...

जागऽ बेटी.. – रिशु कुमार गुप्ता

हर जुग में होखत आइल तहरे प अत्याचार काहें? काँपत...

हमहि से प्रेम हमहि से छुपावे के बा-मुकेश भावुक

उनुकर इरादा हमके सतावे के बा, हमहि से प्रेम हमहि...