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बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे – नूरैन अंसारी

अरे दुःख ये दुनिया में केकरा पास नइखे.
बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे.

ज्यादा सोचेब त तिल ताड़ बन जाई.
ई चार दिन के जिनगी पहाड़ बन जाई.
बताई ना ख़ुशी के, केकरा तलाश नइखे.
बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे.

सबर करेब त रतियों बिहान हो जाई.
आ बेसब्री में ख़ुशी भी जियान हो जाई.
केकरा मन में अशांति के निवास नइखे.
बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे.

मत चिंता से चेहरा के चमक बिगाड़ी.
डगरे दी लाहे – लाहे जिनगी के गाड़ी.
हँसे खातिर कवनो मास में खरवास नइखे.
बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे.

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