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रसे-रसे महुवा फुलाइल हो रामा उनुका से कहि दऽ – डॉ अशोक द्विवेदी

‘साहित्य श्री’ (कन्हैयालाल प्राग्दास हिन्दी संस्थान, लखनऊ) 1994,‘भोजपुरी-शिरोमणी’,(अखिल भारतीय भोजपुरी परिषद, उ॰प्र॰), ‘राहुल सांस्कृत्यायन पुरस्कार, 1998 (हिन्दी संस्थान, उ॰प्र॰),‘लोकपुरुष’ (विश्व भोजपुरी सम्मेलन एवं स्वदेशी मंच, वाराणसी),‘भिखारी ठाकुर स्मृति सम्मान (भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इण्डिया एवं सन्डे इन्डियन, नई दिल्ली)आदि कई संस्थानों से सम्मानित। भोजपुरी दिशा बोध की पत्रिका पाती का वर्ष 1979 से निरंतर प्रकाशन और संपादन।

घर से लेके बहरा तक हम धावत रह गइनी – नूरैन अन्सारी

साख आपन ज़िनगी भर बचावत रह गइनी, कुछ बेमतलब के...

बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे – नूरैन अंसारी

अरे दुःख ये दुनिया में केकरा पास नइखे. बाकिर हर...

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा -नूरैन अन्सारी

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा. धतूर जइसन कडुआ...

आदमी आदमी के नज़र – मुकेश यादव ‘भावुक’

आदमी आदमी के नज़र में फेर हो गइल,सांझ के...

ज़िनगी के जियल आसान नईखे – नूरैन अंसारी

ज़िनगी के जियल आसान नईखे. आज के बाटे जे परेशान...

हँस देला में आख़िर नुक़सान का बाटे ?

नूरैन अंसारी भोजपुरी के उभरते हुए चर्चित गीतकार,ग़ज़लकार व साहित्यकार हैं.

नईखे जिनगी के रहियाँ आसान भाई जी

दुखऽ , मुसीबत ना घर से ओराला
तनी-तनी बतिया पे अँखियाँ लोराला
चिंता धईले बा साझों बिहान भाई जी
नईखे जिनगी के रहियाँ आसान भाई जी

सीता के परिक्षा बाकी बा

वनवास राम के कट गइल
सीता के परिक्षा बाकी बा
हे अवध के राजा अजुवो ले
माई के समस्या बाकी बा

आदाबो ख़यालात में कितने अच्छे थे तुम-अभिषेक वत्स

आदाबो ख़यालात में कितने अच्छे थे तुम
वो पहली मुलाक़ात में कितने अच्छे थे तुम

तारों के बिना चेहरा उतरा उतरा सा है
ओ चाँद मियाँ! रात में कितने अच्छे थे तुम

मन काहें अकुताइल बा – मुकेश यादव

मुकेश यादव 'भावुक' भोजपुरी के उभरते हुए साहित्यकार हैं और वर्तमान बातचीत की भाषा मे गीत,ग़ज़ल लिखने का प्रयत्न करते हैं.

जबसे गाँव के माटी छूटल – नूरैन अन्सारी

नूरैन अंसारी भोजपुरी के उभरते हुए स्टार साहित्यकार हैं. अपने लेखन में अंसारी आज की भाषा में आज का साहित्य प्रस्तुत करते हैं.

बर पीपर के छाँव के जइसन बाबूजी

बर पीपर के छाँव के जइसन बाबूजीहमरा भीतर गाँव...