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टूटा दिल सँभाले कब तक-नूरैन अन्सारी

झूठे सपने पाले कब तक.
टूटा दिल सँभाले कब तक.

कोई सवाल उनसे भी पुछे,
ख़ुद को हम खंगाले कब तक.

कुछ तो बात अंधेरों से हो,
गिरवी रहे उजाले कब तक.

हम भी दिल की बात कहेंगे,
रखें मुँह पर ताले कब तक.

तुम बने हो साहिब-ए-मसनद,
साफ़ करे हम जाले कब तक.

मेरी मंजिल थोड़ी तरस तू खा,
पड़ेंगे पाव में छाले कब तक.

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