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घर से लेके बहरा तक हम धावत रह गइनी – नूरैन अन्सारी

साख आपन ज़िनगी भर बचावत रह गइनी,
कुछ बेमतलब के रिश्ता निभावत रह गइनी.

करजा हमरा मुड़ी पर से उतरल ना कबहू,
घर से लेके बहरा तक हम धावत रह गइनी.

उहे लोगवा आख़िर कर देहलस कगरी,
लड़ के सबका से जेकरा के मिलावत रह गइनी.

सबकुछ गँवा के अँखिया के लोर बस मिलल,
जिनगी भर हम सबका के हँसावत रह गइनी.

नूरैन दुख हमरा दुवरा से कबो वापस ना गइल,
हम मंदिर – मस्जिद सिर झूकावत रह गइनी.

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