यह भी पढ़ें

केतनो रोई बाकिर अखिया लोरात नइखे – नूरैन अन्सारी

केतनो रोई बाकिर अखिया लोरात नइखे !
दुःख दईबा रे जिनगी से ओरात नईखे !

कर देहलस बेभरम महंगाई आदमी के,
बोझ जिनगी के ढोवले ढोवात नइखे !

कबो बाढ़ आईल त कबो सुखाड़ ले गईल,
अब खेत कौनो मन से बोवात नइखे !

खेतिहर मौसम के मार से टुअर-टॉपर भईल,
महल मड़ई पर तनको मोहात नइखे !

जहिया रहे जरूरत त तकबो न कईलेन,
आज बेमतलब के सटल सोहात नइखे !

नूरैन भीतर के मार लोग भीतर सहत बा,
सगरी बात पंच के आगे खोलात नइखे !

आपको यह भी पसंद आएगा