डेस्क स्टाफ

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बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे – नूरैन अंसारी

अरे दुःख ये दुनिया में केकरा पास नइखे. बाकिर हर केहु रउआ खानि उदास नइखे. ज्यादा सोचेब त तिल ताड़ बन जाई. ई चार दिन के जिनगी...

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा -नूरैन अन्सारी

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा. धतूर जइसन कडुआ गुलाब लागत बा. करीं झूठे बड़ाई त खूबे गच बाटे लोग, साँच कहला पर मुंह में जॉब...

स्वर्ग जईसन घर भी बटाये लागेला – नूरैन अन्सारी

जब आपन-आपन लोगवा चिन्हाये लागेला. तब स्वर्ग जईसन घर भी बटाये लागेला. जब घर में अबर हो जाले बिश्वास के बरही, तब कौनो तिसरईत के हेंगा टंगाये...

बोलवले बा केहू हमरा के देके तार होली में – सुनील कुमार तंग ( तंग इनायतपुरी)

ग़ज़ल लिखनी हँ सातो रंग से चटकार होली में बोलवले बा केहू हमरा के देके तार होली में । कबो हमनी लगवले जे रहीं कचनार होली...

ई ज़िनगी ह, येही लेखा चलत रही – नूरैन अन्सारी

केहु साथ दी , केहु छलत रहीं. केहु खुश होई, केहु जलत रहीं. ई ज़िनगी ह, येही लेखा चलत रहीं. दुख - सुख तऽ जात आवत रही कबो...

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केतनो रोई बाकिर अखिया लोरात नइखे – नूरैन अन्सारी

जीवन में दुःख के बावजूद आंसू नहीं बहते, महंगाई से आदमी बेहाल है पर जिंदगी का बोझ उतरता नहीं| बाढ़ और सूखे से किसान प्रभावित होते हैं, अब खुशी से खेती नहीं होती| लोग जरूरत पर साथ नहीं देते, और आंतरिक पीड़ा छिप के सही जाती है।

करके देखीं रउओ मंथन – ओमप्रकाश पंडित ‘ओम’

इस कविता में जीवन के गहरे बंधन और मुश्किलें व्यक्त की गई हैं। आत्म-विश्लेषण करे बिना इंसान को कुछ नहीं मिलता, और अहंकार से वह अलग-थलग पड़ जाता है। आपसी भेदभाव से समाज बंटता है, पर जो भ्रम से परे हो उसे कोई नहीं हरा सकता। इंसान को मानवता से प्रेम करना चाहिए।
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