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वक्त रउओ के गिरवले आ उठवले होई

वक्त रउओ के गिरवले आ उठवले होई
छोट से बड़ आ बड़ से छोट बनवले होई

अइसे मत देखीं हिकारत से एह चिथड़ा के
काल्ह तक ई केहू के लाज बचवले होई

धूर के भी कबो मरले जो होखब ठोकर तs
माथ पर चढ़ के ऊ रउआ के बतवले होई

जे भी देखियो के निगलले होई जीयत माछी
अपना अरमान के ऊ केतना मुअवले होई

काश! अपराध के पहिले तनी सुनले रहितीं
आत्मा चीख के आवाज़ लगवले होई

जिंदगी कर्म के खेला ह कि ग्रह-गोचर के
वक्त रउओ से त ई प्रश्न उठवले होई

जब मेहरबान खुदा ,गदहा पहलवान भइळ
अनुभवी लोग ई लोकोक्ति बनवले होई

अइसहीं ना नू गजल-गीत लिखेलें भावुक
वक्त इनको के बहुत नाच नचवले होई

परिचय:  मनोज भावुक जी भोजपुरी इंडस्ट्रीज़ मे परिचय के मोहताज नहीं है। 02 जनवरी 1976 को सिवान जिले मे पैदा हुए। मनोज भावुक का भोजपुरी गजल संग्रह “तस्वीर ज़िंदगी के” और भोजपुरी दोहा व गीत संग्रह “चलनी मे पानी” है।  यहाँ प्रकाशित गजल मनोज भावुक की लिखी हुई है। साइट पर प्रकाशित कोई भी कंटेन्ट अगर आपके कॉपीराइट का उलंघन करता है तो हमें info@lallanbhojpuri.com पर मेल करें, हम उसे 24 घंटे के अंदर अपने प्लेटफार्म से हटा देंगे। 

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