केतना कदम के डार हम रहनी अगोर के
तबहूँ तोहार बाँसुरी बाजल न भोर के
कब तक घिरल अन्हार में कलपत रही करेज
कब तक सनेह के किरिन उतरी अंजोर के ?
जब तक तोहार प्रान में नइखे दरद के मोल
हम का करब ई आँखि में मोती बटोर के ?
खोंता हमार प्यार के दिहल सदा उजाड़
दिहल ढकेल पांक में बहियाँ ममोर के
अइसे तोहार चाल ई बाटे बहुत पुरान
जाल छटक करेज के कनखा खंखोर के
तबहूँ दिया उमेद के बाटे जरत ‘अशान्त’
कबहूँ त पंख प्रान ई थिरकी नू भोर के